एक बार विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय दरबार में बैठे मंत्रियों के राज्य के सुख-शांति के विषय में विचार विमर्श कर ही रहे थे कि तभी एक व्यक्ति उनके सामने आकर रोते हुए चिल्लाने लगा, “महाराज मेरे साथ न्याय करें। मेरे मालिक ने मेरे साथ विश्वासघात किया है। इतना सुनते ही महाराज ने उससे पूछा, मित्र, तुम कौन हो तुम? और तुम्हारे साथ क्या अन्याय हुआ है।”
“अन्नदाता मैं आपके ही राज्य का निवासी हूँ और मेरा नाम नामदेव है। कल मैं अपने मालिक के साथ किसी काम से एक दुसरे गाँव में जा रहा था। भयंकर गर्मी की वजह से चलते-चलते हम बहुत थक गए और पास में स्थित एक मंदिर की छाया में बैठकर आराम ही कर रहे थे तभी मेरी नज़र एक लाल रंग की आकर्षक थैली पर पड़ी जो कि मंदिर के एक कोने में पड़ी हुई थी।